प्रदेश के सरकारी स्कूलों की किताबों में यदि आपको नए सत्र से ग्रामीण या क्षेत्रीय इलाकों में बोले जाने वाले शब्द कागलों, बांदरों, उटड़ों, बल्ली जैसे शब्द दिखाई दे तो आप हैरान नहीं होना। क्योंकि राजस्थान में नए सत्र से प्राथमिक शिक्षा के बच्चों को ग्रामीण क्षेत्रों की भाषा में पढ़ाई कारवाई जाएगी।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा की देश में नई शिक्षा नीति वर्ष 2020 से ही लागू हो गई है। लेकिन राजस्थान में विपक्ष की सरकार होने से अभी तक नई शिक्षा नीति को नहीं लागू किया गया था। अब राजस्थान में भी बीजेपी की सरकार बन गई है। इसलिए नए सत्र से नई शिक्षा नीति लागू कर दी जाएगी। जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर दिया गया है।
अपनी ही भाषा में पढ़ेंगे सरकारी स्कूलों के बच्चे
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है की बच्चे अपनी लोकल भाषा में सीखने के लिए ज्यादा उत्सुक होते है। इसलिए उनकी प्राथमिक शिक्षा भी क्षेत्रीय भाषा में की जाएगी। क्योंकि आज के समय में भी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में हिन्दी की बजाय लोकल बोलियों का ज्यादा प्रयोग होता है।
नई शिक्षा नीति के तहत राजस्थान के सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर की शिक्षा लोकल बोली हाड़ौती के अलावा शेखावाटी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, गवारिया, मारवाड़ी, खैराड़ी, वांगड़ी, सांसी, बंजारा, मोटवाड़ी, देवड़ावाटी व थली में दी जाएगी। किताबों के लिए इन बोलियों की शब्दावली की जा रही है। जल्दी ही नई किताबें सरकारी स्कूलों में नए सत्र से वितरित की जाएगी।
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर की इस घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर तहत तहत की प्रतिक्रिया आ रही है। इसमें से एक यूजर का कहना है की “मातृभाषा के लिए एक अलग से बुक प्रिंट करवा दो, गलत हैं ये। ये सब तो घर में ही सीख लेगे”
वही एक अन्य यूजर का कहना है की “मंत्री खुद तो अपने बच्चों को बड़े बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते है लेकिन गरीबों के बच्चों को वही का वही रखना चाहते है। क्योंकि सरकारी स्कूलों में गरीबों के बच्चे ही पढ़ते है।”
सरकारी स्कूलों की किताबों में स्थानीय बोलियों को शामिल करने के मुद्दे पर आप क्या सोचते है, हमें नीचे कमेन्ट करके जरूर बताएं। क्या इस प्रकार की पढ़ाई पूरे देश में होनी चाहिए। या इससे बच्चों का विकास रुक जाएगा और वे शहर के बच्चों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे।